अधखुली आँखों में
संजोये कुछ ख्वाब
रात की स्याही
और जिंदगी की किताब
धुंधला सा एक सच
पलकों के किनारे
दो बूँद पानी की
और दिल की गिरहें
ठहरी सी जिंदगी
जाने किस मोड़ पर
क्यूँ यादें भी नहीं बाक़ी
अब जहन की छोर पर
गुमसुम सी जिंदगी से
सवाल जाने कितने
टूटे भी नही टूटकर
कैसे थे वो सपने
इस रात के परे
नए सुबह की दस्तक
खुली आँखों से सपने
देखना बाक़ी है अब तक
thik se threading nahi karayi hai foto wali :P
ReplyDeletewaise poem achha hai .. woh to hum chat pe hi bata diye the
ye pic moto cam ka hai...us waqt yahi ek aankh ka pic tha...i'll change it later!!!
ReplyDeleteGood Job ritu... aur likho..
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