Wednesday, December 8, 2010

for you माँ..

जाड़े की सर्दी, धूप सुनहरी,
ठन्डे हाथ से हमें उठाना..
कच्ची नींद अचानक टूटती
तुम्हारा जोर से छीकना..
कपडे बिखरे यहाँ वहाँ,
उनको रोज समेटना...
खुली किताबें, आँखें सोयीं,
तीन कप चाय फिर बनाना...
टेढ़ी मुस्कान, नाक पे चश्मा,
घंटो बचपन की गप्पें लड़ाना...
यहीं रखा था-कहाँ गया फिर?
हर दिन कुछ ढूंढ़ना...
गर्म तवे पे जल्दी-जल्दी,
बिन चिमटे, रोटी सेंकना...
छुट्टियों के दिन अलसाए,
दिन भर लूडो खेलना...
वो हँसना, वो रोना,
बिन बात यू हीं,
मुझ से महीनो रूठना..
जाने कयू अब याद आता है,
माँ तुम्हारा डांटना!!!

2 comments:

  1. i remember my school days....aur is wakt to exam time hota tha...kitne ache din the wo... aur isme tumhara aur aunty ke memories saf dikhte hai...m sure aunty bahut khus hogi ye padhke....

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  2. momma kabhi bhi ye nahi padhegi...yahi to charm hai aise post karne ka...i am really not gud at saying mushy things to her.

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