Wednesday, September 29, 2010




अधखुली आँखों में
संजोये कुछ ख्वाब
रात की स्याही
और जिंदगी की किताब

धुंधला सा एक सच
पलकों के किनारे
दो बूँद पानी की
और दिल की गिरहें

ठहरी सी जिंदगी
जाने किस मोड़ पर
क्यूँ यादें भी नहीं बाक़ी
अब जहन की छोर पर

गुमसुम सी जिंदगी से
सवाल जाने कितने
टूटे भी नही टूटकर
कैसे थे वो सपने

इस रात के परे
नए सुबह की दस्तक
खुली आँखों से सपने
देखना बाक़ी है अब तक



3 comments:

  1. thik se threading nahi karayi hai foto wali :P

    waise poem achha hai .. woh to hum chat pe hi bata diye the

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  2. ye pic moto cam ka hai...us waqt yahi ek aankh ka pic tha...i'll change it later!!!

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