Thursday, September 5, 2013

Axis

नाम दिया तुमने
फिर भी क्यूँ लगती
तुम्हे-मेरी पहचान अधूरी है

चाहतें हैं हज़ारों
उनको पाने की
क्यूँ- अरदास ज़रूरी है?

अपनी ही बच्ची
क्यूँ अपनो को
लगती- हर हाल अधूरी है

अपना लो बस
मैं जैसी हूँ
ऐसी भी, क्या मजबूरी है?

सब कुछ तो है
तेरी पहुँच के दायरे मे
फिर, कम्बख़्त क्यूँ दूरी है

माना हूँ किसी और जहाँ की
पर तुम पे टिकी
मेरी धुरी हैं.

Friday, May 31, 2013

...and the reason is You!

सांसो की डोर से
ज़िंदगी पिरो रखी थी
वो जाने किस जनम की
गिरह माँग बैठे

खुशी की वजह वो
उदासी भी उनसे
वो अपनी उदासी में
मेरे माथे पे शिकन की
वजह माँग बैठे

उनकी मय्यत पे
जनाज़ा हम अपना भी
सज़ा लेते,
जो वो मुझसे मेरे
जीने की वजह माँग बैठे


Monday, February 11, 2013

Incomplete chapter


इस सच और झूठ
की दुनिया के परे
एक और दुनिया है
जहाँ एक खली मैदान
तुम्हारे इंतज़ार में बैठी
मैं नादान
ये भी न समझी
की तुम तो
इसी सच और झूठ
का हिस्सा हो
जो भूल गयी कहीं
बस एक अधूरा किस्सा हो