Thursday, August 4, 2011

याद- Yaad


उठती गिरती लहरों में,
खट्टे मीठे पहरों में,
शामों में सहरों में,
अलसाये दोपहरों में....
पतझड़ में , बहारों में,
जो भूल बैठी,
बचपन के उन पहाड़ों में....
दिल की बस्ती में, शहरों में,
मूरत बने पत्थरों में...
मंदिर में , मजारों में,
उन लम्बी ठहरी कतारों में,
आसमां से झांकते तारों में,
छोटी सी जीत,
बड़ी हारों में...
उन हजारों इशारों में,
अनकही इकरारों में,
खुद से कर बैठी,
यू ही, उन करारों में....
एक तस्वीर तुम्हारी,
दिल की दीवारों में....
एक एहसास तुम्हारा,
मुझसे लिपटी,
करवटें लेती चादरों में....
बुझते -जलते, मिटले बनते,
धुंधले चेहरों में...
एक तुम हो,
जाने कितने हजारों में...
एक हँसी तुम्हारी,
इन बाहों की हारों में...
एक याद तुम्हारी,
मेरी नज़र के किनारों में....

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